Friday, January 8, 2021

આજે અમેરિકામાં જે થઈ રહ્યું છે એ કાલે ભારતમાં પણ થઈ શકે છે


 

#વિચારમંથન
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અમેરિકી સંસદભવનમાં હિંસા જોઇને અનેક લોકો આઘાતમાં સરી પડ્યા છે.
સામાન્ય નાગરિકો ઉપરાંત અખબાર, ટીવી, સમાચાર પોર્ટલ સહિત તમામ મીડિયા... બધા એક સાથે શૅઇમ-શૅઇમ કરી રહ્યા છે. બરાબર છે. સૌથી જૂની લોકશાહીના નામે ચરી ખાતા અમેરિકામાં આવી ઘટના શૅઇમજનક અને શરમફૂલ જ છે...પણ પણ પણ ---
પણ... આ શૅઇમ-શૅઇમ કરી રહેલા હરખપદુડાઓને ખબર છે ખરી કે આવી સ્થિતિનું નિર્માણ કેમ થયું?
🎯 આવી સ્થિતિનું નિર્માણ એટલા માટે થયું કે, છેલ્લા ચાર વર્ષમાં હિંસાખોર ડાબેરીઓ, જેહાદીઓ અને એમના ઉપર નભતા ડેમોક્રેટ પક્ષે પ્રમુખ ટ્રમ્પને એક દિવસ માટે શાંતિથી જીવવા નથી દીધા.
🎯 આવી સ્થિતિનું નિર્માણ એટલા માટે થયું કે, હિંસાખોર ડાબેરીઓ, જેહાદીઓ તેમજ એ માનસિકતાને રોજેરોજ ખાતર-પાણી આપતા દુનિયાભરના મીડિયાએ પ્રમુખ ટ્રમ્પના તમામ રાષ્ટ્રવાદી પગલાંનો હિંસક વિરોધ કર્યો છે. પણ કમનસીબે દુનિયાને એ હિંસા કદી દેખાઈ નહીં, આજે બધા જ છાપરે ચઢીને છાજિયાં લે છે.
🎯 ટ્રમ્પના પૂતળાને જાહેર રસ્તા ઉપર ફેરવીને તેની પૂંઠ ઉપર લાતો મારાતા અમેરિકી નાગરિકો શું લોકશાહીના સર્વોચ્ચ રક્ષકો હતા? નકલી અમેરિકી ડૉલરની નોટ વટાવવાનો પ્રયાસ કરનાર એક અશ્વેત પકડાયો અને પોલીસ અધિકારીની ભૂલથી મૃત્યુ પામ્યો એમાં અનેક મહિના સુધી #બ્લેક_લાઇવ્સ_મૅટરના નામે ભયંકર હિંસા અને લૂંટફાટ કરનારા અમેરિકી નાગરિકો શું લોકશાહીના સર્વોચ્ચ રક્ષકો હતા?
🎯 આ લાલબત્તી 🛑 એટલા માટે ધરું છું કે, ભારત દેશ 2014 પછી દર વર્ષે એક વખત આ સ્થિતિ જોઈ રહ્યો છે. ગુજરાતનું પાટીદાર અનામત આંદોલન હોય કે અખલાકના નામે કરવામાં આવેલું લઘુમતી રાજકારણ હોય, રોહિત વેમુલાના નામે કરવામાં આવેલું દલિત રાજકારણ હોય કે પછી ગૌરક્ષકોના નામે સમગ્ર હિન્દુ સમાજને અસહિષ્ણુ ચીતરી દેવાનું કાવતરું હોય, કમલેશ તિવારી, દિલ્હીના ડૉક્ટર નારંગ, ત્રિરંગાયાત્રાએ નીકળેલો ચંદન હોય કે પછી પાલઘરના સાધુઓ હોય, શાહીનબાગ ઘેરાવ હોય કે ખેડૂત આંદોલનના નામે જે કંઈ થઈ રહ્યું છે તે હોય... હિંસાખોર ડાબેરીઓની દિગ્દર્શન હેઠળ થઈ રહેલી આ બધી હિંસાને બદમાશ અને એજન્ડાધારી મીડિયા કે કથિત બુદ્ધિજીવીઓ અથવા વગદાર હિન્દુવાદીઓ નાની ઘટનાઓ ગણીને હાલ ઉપેક્ષા કરે છે...પણ હવે અમેરિકી સંસદ અને અમેરિકી શેરીઓમાં જે દૃશ્યો જોવા મળે છે તેને જોઇને સાવધાન થવાની જરૂર છે. સાયલન્ટ બહુમતી ગમેત્યારે હિંસક બની શકે છે, એ વાત બુદ્ધિવિનાના પત્રકારો અને કાવતરાંખોર તંત્રીઓને કદી સમજાતી નથી હોતી.
🎯 હિંસાખોર ડાબેરીઓના માર્ગદર્શન હેઠળ ભારત વિરોધી તત્વોએ નરેન્દ્ર મોદી, યોગી આદિત્યનાથ સહિત તમામ લોકપ્રિય અને સક્ષમ નેતાઓનું ભયંકર અંગત અપમાન લગભગ રોજેરોજ કરવામાં આવે છે.
🎯  છેલ્લા થોડા દિવસથી તામિલનાડુમાં મંદિરો અને ભગવાનની મૂર્તિઓ તોડવામાં આવી રહી છે, અને એ હિંસા હિંસાખોર ડાબેરીઓ, જેહાદી મીડિયાને કેમ દેખાતી નથી?અલકેશ

Saturday, January 2, 2021

कहां अटकी पडी है हिन्दू बुद्धिजीवीओं की ट्रेन?


 

--- लैफ्ट के जेहादीओं से बनी टुकडे टुकडे गेंग को दिन-रात कोसने वाले हिन्दू बुद्धिजीवी उन्हीं जेहादीओं की मोडस ओपरेंडी को क्यों नहीं समजते? क्यों यह हिन्दू बुद्धिजीवी फूफा की मानसिकता से बाहर नहीं आते?

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n  अलकेश पटेल

 

भगवान श्रीकृष्ण सबसे शक्तिशाली थे। वह चाहते तो, न तो द्रौपदी का चीरहरण होता और ना ही महाभारत। श्रीराम अवतार थे। वह चाहते तो, न माता सीता का अपहरण होता और ना ही लंकेश के साथ युद्ध करना पडता। फिर भी यह सब कुछ हुआ। क्यों हुआ? श्रीकृष्ण और श्रीराम चाहते थे कि सभी मनुष्य अपनी अपनी शक्ति पहचाने और अपना अपना काम करें।

सृष्टि का हर जीव अपने जीवन के लिए और अपने बचाव के लिए संघर्ष करता है। कोई एक दूसरे पर आश लगाए बैठा नहीं रहता। क्यों?

हमारे धर्मशास्त्र भी हजारों उदाहरणों से समजाते है कि, दूसरों के उपर आश लगाए बैठे रहने के बजाय, दूसरों को कोसते रहने के बजाय तुम अपना काम करो।

लेकिन इसमें से किसी भी बात हमारे हिन्दू बुद्धिजीवी समज नहीं पाते है।

हिन्दू बुद्धिजीवीओं की ट्रेन वैसे तो बहुत लम्बी और मजबूत है। वह चाहे तो ऐसा रास्ता तय कर सकती है जहां तक कोई नहीं पहुँच सकता। यह ट्रेन उतने लोगों को अपने साथ ले सकती है जीतने लोगों की तो पोपुलेशन कईं सारे देशों की नहीं है। लेकिन यह ट्रेन स्टेशन के यार्ड में पडी है। दशकों से यह ट्रेन बस यही इंतजार में है कि कोई आए और उसे अपने कंधे पर उठा कर चले। यह बडी और शक्तिशाली ट्रेन खुद चलना नहीं चाहती। सिर्फ यार्ड में बैठे बैठे हिन्दू नेताओं, हिन्दू राजनैतिक पार्टीयां, हिन्दू संगठन – सभी को कोसती रहती है कि यह लोग उनको कंधे पे उठा के चलते क्यों नहीं?

हिन्दू बुद्धिजीवी 2014 से कुछ ज्यादा ही संवेदनशील हो गए है। वह अपनी जानकारी पर, अपने ज्ञान पर खुद ही मुग्ध है। वह ऐसा मानते है और लिखते रहते है कि बीजेपी और संघ के नेताओं को उनके पास सुबह-शाम हाजरी लगानी चाहिए और उनको कंधे पर उठाके चलना चाहिए।

लेकिन ऐसा हो नहीं रहा। बीजेपी शासन में व्यस्त है, और संघ अपना काम कर ही रहा है। बीजेपी को अनेकों हमले झेलने है। उसे शासन में भी ध्यान देना है और लैफ्ट के जेहादीओं से भरे ऐडमिनिस्ट्रेशन पर भी नजर रखनी है। बीजेपी सरकार को विदेश नीति भी संभालनी है और शाहीनबाग और कथित-किसान आंदोलन से भी निपटना है।

 

हिन्दू बुद्धिजीवीओं को फूफा की मानसिकता छोडनी पडेगी

 

फिर भी गुजरात में और राष्ट्रीय स्तर पर पीछले छह वर्ष से मैं ऐसे हिन्दूवादीओं को देख रहा हूँ, सून रहा हूँ – जो भाजपा और मोदी को कोसते रहते है। शायद मोदी को सीधे सीधे नहीं कोसते लेकिन भाजपा से उस तरह नाराज रहते है जैसे शादी वाले घर में फूफा!

यह सभी हिन्दू बुद्धिजीवी फूफा - कहीं पत्रकार है, कहीं लेखक है, कहीं स्तंभकार है, कहीं टीवी में एक्सपर्ट के रूप में बैठे है। सभी मंच पर भाजपा, संघ और हिन्दू समाज के पक्ष में दबे स्वर में बोलने के बाद, लिखने के बाद ऐसा मान लेते है कि अभी भाजपा और संघ वाले आएंगे और उन्हें कंधे पर बैठाकर लाड लडाएंगे, सोने की थाली में खाना देंगे, कहीं किसी समिति में शामिल कर लेंगे, कहीं किसी कंपनी में डिरेक्टर बना देंगे, कोई संस्था का अध्यक्ष बना देंगे। और ऐसा नहीं होने पर भाजपा और संघ को कोसने लगेंगे, साथ ही भाजपा और संघ के प्रति सम्मान रखने वाले अन्य हिन्दूओं को भक्त और अंध-भक्त के संबोधित भी करेंगे, जो काम लैफ्ट जेहादीयों की गिरोह करती है।

 

आशा करोगे तो निराशा तो मिलनी ही है

 

मैं यह बात खास करके मेरे गुजराती लेखों में कम से कम दस वर्ष से लगातार कह रहा हूं की जो भी लोग भारतवर्ष और सनातन का भला चाहते है वह अपने अपने स्तर पर, अपनी अपनी शक्ति के मुताबिक काम करते रहे। ऐसा काम करते समय भाजपा या संघ या दूसके किसी पर आश लगाए बैठे रहने की जरूरत नहीं है। आशा करोगे तो निराशा अवश्य मिलनी ही है।

लेकिन मेरी बातों का अभी तक ज्यादा असर नहीं हुआ। कारण यह है कि, हिन्दु बुद्धिजीवी असल में खुद कुछ काम करना नहीं चाहते। वह सिर्फ ऐसा मान कर चलते है कि उनके बोलने से, लिखने से सब कुछ ठीक हो जाऐगा।

सबसे बडी कमनसीबी यह है कि इस तरह के हिन्दू बुद्धिजीवीओं को न तो घरेलु समस्याओं और राजनीति के बीच के रिश्ते के बारे में पता है, और न ही उन्हें जीओ-पोलिटिक्स के बारे में।

इस तरह के हिन्दू बुद्धिजीवी लैफ्ट के जेहादीओं से यह बात सीखने को तैयार नहीं है कि सरकार या संगठन की टीकाएँ करने के बजाय सामने से उनके पास जा कर उनके काम में सहयोग करें। लैफ्ट और मिशनरी जेहादीओं ने कभी कांग्रेस सरकारों की और कांग्रेस पार्टी की टीकाएँ नहीं की है, क्या यह बात हिन्दू बुद्धिजीवी देख और समज नहीं पाते?

सच तो यह है कि हिन्दु बुद्धिजीवीओं को अपनी मुग्धता से नीचे उतर कर सरकार, पार्टी और सामान्य जनता के साथ काम करना चाहिए। (लैफ्ट और मिशनरी जेहादी उनके खेमें मे यही करते है)

इस तरह के हिन्दू बुद्धिजीवीओं को यह बात समझनी ही पडेगी कि उनके लिख देने से, उनके बोल देने से परिवर्तन नहीं आ जाता। खुद काम करने से परिवर्तन होता है। आपका लिखा हुआ और आपका बोला हुआ 200 – 500 - 1000 लोग पढते-सुनते है। और यह लोग भी आप की एक ही बात बार-बार सुनने के बाद उब जाते है, और वह संख्य कम होती जाती है। उससे विरुद्ध लैफ्ट-मिशनरी जेहादी उनसे सहानुभूति रखनेवाली सरकार के पास जा कर बैठते है, उनसे सहानुभूति रखनेवाली राजनैतिक पार्टी के पास जा कर बैठते है, उनसे सहानुभूति रखनेवाली जनता के बीच जा कर बैठते है – और उस तरह उनका दबदबा बना रहता है, उनका इको-सिस्टम बना रहता है और तब जा कर पद मिलते है, या फिर अपने मन चाहे काम करवा सकते है।

टीका-टिप्पणीयाँ करने से कुछ हासिल नहीं होगा। आपको कुछ भी बदलाव लाना है, आप कुछ भी बदलाव चाहते है तो उसमें शामिल होना ही पडेगा। और शामिल नहीं हो सकते हो तो टीका-टिप्पणीयाँ करके हिन्दूओं में फूट डालना बंद करो। अगर आपको लगता है कि हर समय पार्टी और संगठन को गाली देने से सब कुछ ठीक हो जाऐगा, तो मुझे बजे दुख के साथ कहना पडता है कि आपकी बुद्धिमत्ता पूरी बेकार है।

अगर आप सही में परिवर्तन चाहते है तो मोदी सरकार ने बहुत सारे संकेत दिए है। अगर वह संकेत समझ नहीं सकते हो तो आपका कुछ नहीं हो सकता। हरि ओम।